सीताराम कुशवाहा का राजनीतिक जीवन -
December 22, 2024

सीताराम कुशवाहा का राजनीतिक जीवन

सीताराम कुशवाहा का राजनीतिक जीवन
 

सीताराम कुशवाहा का राजनीतिक जीवन

कांग्रेस नेता सीताराम कुशवाहा का राजनीतिक जीवन सन 1972 में शुरू हुआ सीताराम कुशवाहा जैसे कद्दावर नेता से, झाँसी और बुन्देलखंड धरा पर शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जो अपरिचित हो….

कांग्रेस पार्टी की ओर से 2 बार पार्षद और 4 साल के लिये नगरपालिका के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके सीताराम ने जब 2009 में हुए उपचुनाव के लिये पार्टी से टिकट की इक्षा जाहिर की, तब कांग्रेस की नजरन्दाजगी के चलते अगस्त, 2011 में उन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया।

बसपा ने वरिष्ठ राजनेता के कौशल को परखते हुए 2012 विधानसभा चुनाव के लिये उन्हें सदर सीट, झांसी के लिये प्रत्याशी घोषित किया… सीताराम कुशवाहा ने भी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए करीब 59,000 मत हासिल किये।
वे भले ही उस चुनाव में विजयी ना हो सके लेकिन उन्होंने जीते हुए ख़ेमे को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
महज़ 8,000 वोटों के अंतराल से उन्होंने दूसरा स्थान काबिज़ कर, कांग्रेस को उसकी गलती पर विचार हेतु विवश कर दिया था।

2017 विधानसभा चुनाव में बसपा ने एक बार फ़िर सीताराम कुशवाहा पर दाव आजमाया..

मोदी-लहर में वह निवर्तमान विधायक रवि शर्मा से, जीत तो ना सके लेकिन उनके मत संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली। कृषि परिवार से ताल्लुक रखने वाले सीताराम कुशवाहा शुरुआत से ही किसानों के मसीहा माने जाते रहे हैं।

किसान-आंदोलन में किसानों की बेपरवाही को लेकर उनका मन पार्टी से खिन्न होता चला जा रहा था। अंततः सामाजिक भलाई के उद्देश्य से उन्होंने 18 बसपा सदस्यों सहित अखिलेश यादव से हांथ मिलाया।

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कांग्रेस नेता सीताराम कुशवाहा झाँसी क्षेत्र के उन लोकप्रिय चेहरों में से एक है, जिनका ऐसे चुनाव से पूर्व दल में बदलाव करना बसपा को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

कांग्रेस नेता सीताराम कुशवाहा के साथ घट्ठजोड़

सपा गठजोड़ के बाद अब क्षेत्र का मौर्य-कुशवाहा वोट भी विस्थापित होने की स्थिति में है..
OBC समुदाय शुरुआत से ही समाजवादी पार्टी की ओर झुकाव रखता है, ऐसे में झाँसी क्षेत्रान्तर्गत 8 से 10% कुशवाहा वोट, एकपक्षीय होने की प्रबल संभावना दृष्टिगोचित कर रहा है

इसके साथ,अनेक नीतियों में विफ़ल भाजपा सरकार अब आमजनता के बीच उस सहज स्थिति में नहीं है जितनी पिछले चुनावों में देखी गयी थी, ऐसे में प्रदेश के मुख्य विपक्ष दल के पास सत्ता हासिल करने का उत्तम मौका नजर आ रहा है, बशर्ते जरूरत है सिर्फ उचित नीति-धारणाओं और प्रत्याशी चुनाव की..!

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